
अभी तक आतंकवाद की पौधशाला इस्लाम के अगल-बगल घूम रही थी परन्तु इसने अब ईसाइयत को भी अपने जद में लेना शुरू कर दिया है। यह प्रतिक्रिया स्वरूप हो रहा है और इस खतरनाक प्रतिक्रिया को विरुद्ध कहीं ढँग से आवाज तक नहीं उठ रही है इस देश में। ये प्रतिक्रियाएँ और चुप्पियाँ शायद कुछ समय बाद सनातन के साथ-साथ अन्य धर्म भी इसकी जद में लेना शुरू कर दें तो हैरान होने जैसी बात नहीं होगी तब। ये इस्लाम के नाम के सहारे फैले आतंकवाद की प्रतिक्रिया करते करते लोग उसी विचार को अपनाते जा रहे हैं। इसे आतंकवाद का विरोध करते-करते आतंकवादी हो जाना ही कहेंगे और ये कहीं से भी समाधान नहीं हो सकता।
यदि अब भी आप अपने मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों, गुरूद्वारों और अन्य धार्मिक स्थानों में इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे तो अपने बच्चों को आप भविष्य का मानव बम ही बना रहे हैं।
और हाँ यदि आपको ये लगता है कि सरकारें या कुछ संस्थाएँ मिलकर इसको खत्म कर सकती हैं तो फिर आप नरसंहार के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि सरकारों के पास बंदूक और बम ही एक मात्र तरीका बचता है और हथियार लाबी भी चाहती है कि डर का एक ऐसा माहौल बने ताकि हर हाथ में मोबाइल की तरह हथियार हो। और ये हथियार अमेरिकी समाज को कहाँ लेकर जा रहा है सबको दिख रहा है। इसलिए भारत बने रहने के लिए चुप मत रहिए; मुखर होइए इन चुप्पियों के खिलाफ।
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