नागरिकता अधिनियम पर हंगामा है क्यों बरपा?

नागरिकता अधिनियम, Citizen Amendment Act 2019, CAA, CABभारतीय संसद और राष्ट्रपति ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को संस्तुति दी है परन्तु इस अधिनियम को लेकर पूरे देश में हंगामा हो रहा है। देश के विश्वविद्यालयों से लेकर आम जनता तक सड़क पर आ गई और विरोध अब पूर्णतया हिंसक हो चुका है। इसलिए यह सवाल लाजमी हो जाता है कि नागरिकता अधिनियम पर हंगामा है क्यों बरपा? 

नागरिकता अधिनियम 1955 में सामान्य स्थिति में भारत में नागरिकता मिलने के ४ निम्नलिखित प्रकार वर्णित हैं। 
१. जन्म से (By Birth) 
२. वंशागत (By Descent) 
३. पंजीकरण (By Registration) 
४. प्राकृतीकरण (By Naturalization) 

हालांकि एक पाँचवाँ प्रकार भी है नागरिकता को लेकर परन्तु यह तब लागू होता है जब भारत किसी भूभाग को अपनी सीमाओं में अधिग्रहित करता है। अधिग्रहण के फलस्वरूप उस भूभाग में रहने वाले सभी निवासियों प्राकृतिक रुप से नागरिकता मिल जाती है।

पहले दो प्रकार उन लोगों पर लागू होते हैं जो भारतीय भूभाग पर पीढियों से यहाँ रहते आए हैं या उनके जन्म के समय उनके माता-पिता के पास भारतीय नागरिकता थी/है। बाद के दो प्रकार बाहर से आए हुए लोगों से संबन्धित है। 

नागरिकता बिल में किया गया वर्तमान संशोधन सिर्फ नागरिकता के चौथे प्रकार में हुआ है जिसके अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों जिनका धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हुआ हो तो उन्हें भारत आने के ५ साल बाद नागरिकता मिल सकती है बाकी सभी (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम भी) भारत में आने के ११ साल बाद नागरिकता के लिए निवेदन कर सकते हैं। परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि भारत आने वाले सभी शरणार्थी तरीका कानूनी तरीके से भारत आए हों। कहीं से भी इसका लाभ अवैध घुसपैठिया नहीं उठा सकता। मतलब इन अल्पसंख्यकों को भारत आने के बाद अपने भारत आने का कानूनी यात्रा दस्तावेज और उस देश के नागरिकता का प्रमाण देना होगा। 


इससे ये स्पष्ट दिखता है कि ये संशोधन किसी भी अवैध घुसपैठिया को नागरिकता नहीं दे सकता और ना ही किसी भारतीय की नागरिकता छीन सकता है। जहाँ तक प्रश्न है कि यहाँ के नागरिक अपनी नागरिकता कैसे सिध्द करेंगे। तो साफ है कि जो भारत का ही है और पीढियों से भारत में ही रहता आया है (लगभग सारे भारतीय यहाँ आजादी के समय से या उसके पहले से ही रह रहे हैं) उसकी नागरिकता पर कोई चाहकर भी प्रश्न खड़ा नहीं कर पाएगा। इसलिए नागरिकता अधिनियम के चौथे प्रकार में संशोधन हो जाने से किसी नागरिकता नहीं जा सकती। 

हालाँकि बहुत सारे लोग इस पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं कि ये संशोधन धार्मिक आधार पर लोगों में भेदभाव कर रहा है इसलिए ये भारतीय संविधान के खिलाफ है। परन्तु ये भी तो एक पक्ष है कि भारतीय संविधान सिर्फ भारतीय नागरिकों पर लागू होता है ना कि किसी विदेशी पर। हो सकता है इस संशोधन में कोई संवैधानिक त्रुटि हो परन्तु इसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट करेगा ही करेगा। तो क्यों न सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इन्तजार किया जाए। 

दूसरी ओर कुछ लोग लगातार ये प्रश्न कर रहे हैं कि ये संशोधन मुस्लिमों के साथ अन्याय कर रहा है। तकनीकी रूप से मैं तो कुछ नहीं कह सकता परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि इन तीन इस्लामिक देशों में रहनेवाले मुस्लिमों का मुस्लिम होने के कारण धार्मिक आधार पर उत्पीड़न संभव नहीं है। यदि इस संशोधन में सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्य भी होता तो भी इस देशों में रहने वाले मुसलमानों को धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर नागरिकता नहीं मिल पाएगा और उन्हें भारत की नागरिकता के आवेदन के लिए ग्यारह साल तक प्रतीक्षा करना ही पड़ेगा। इसलिए इस प्रवाधान के ढाल बनाकर देश में अव्यवस्था फैलाने और संपति जलाने को विरोध नहीं कहा जा सकता। बल्कि ये राजनैतिक रूप से लोगों की भावनाओं के खेलने का काम भर लगता है। 

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