लॉकडॉउन, डर और घर की तरफ जाते हुए लोग

दिल्ली, मुम्बई व अहमदाबाद, हर बड़े शहरों से लोग भागकर अपने गाँव और घरों की ओर लौटना शुरू कर दिए हैं। इन शहरों के बस स्टेशनों पर भीड़ है। एक बहुत बड़ी भीड़। हजारों-लाखों लोग अपने घरों की तरफ लौट पड़े हैं कुछ पैदल तो कुछ सरकार द्वारा उपलब्ध कराए यातायात साधनों से। समाचार चैनेल, अखबार व सोशल मीडिया ऐसी सूचनाओं से भरा पड़ा है।

अपने घरों की तरफ जाते हुए लोगों को जो जहाँ है वहीं रोकने के लिए भोजन, आवास व स्वास्थ्य की समुचित सुविधाओं की वैकल्पिक व्यवस्था करना आवश्यक है ना कि उनके जाने के बस या ट्रक की। अभी वे किसी राज्य या जिला विशेष के निवासी या फिर भार नहीं वरन नागरिक हैं जो कोरोना वायरस के संभावित कैरियर भी हो सकते हैं। वे भारत की केंद्रीय व राज्य सरकारों की जिम्मेवारी हैं। अब तक सरकारों ने अपना काम बहुत बढिया से किया है। परन्तु इन लोगों का इस तरह से देश के एक कोने से दूसरे कोने में जाना इस लॉकडॉउन के उद्देश्य एवं सरकारों व स्वास्थ्य विभाग के सभी प्रयासों को असफल बना सकता है। भारत अभी उस मोड पर खडा है जहाँ उसमें लॉकडॉउन की असफलता को बर्दाश्त कर पाने की क्षमता नहीं है। ना ही आर्थिक और ना ही स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाओं की।



इस महामारी की मार इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, आस्ट्रिया, स्वीटजरलैंड और अमेरिका जैसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश भी नहीं झेल पाए हैं। भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था तो ऐसे ही बहुत लचर है।

अब जब लोग संक्रमित शहरों से निकलकर अपने घरों को या तो जा रहे हैं या जा चूके हैं तो सरकार के लिए ये सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि इन सभी लोगों की कोरोना वायरस के लिए स्क्रीनिंग की जाए और हो सके तो उन्हें क्वारेंटाइन किया जाए।

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