दिल्ली की सिविक व्यवस्था इतनी लचर क्यों है?

प्रकृति भी अजब-गजब खेल दिखाती है। परसों तक दिल्ली में पानी की कमी से हाहाकार मचा था।‌ चारों तरफ पानी की कमी से लोग परेशान थे। राजनैतिक दल राजनीति करने में परेशान थे तो मंत्री साहिबा अपना काम छोड़कर भूख हड़ताल में व्यस्त थीं। लेकिन कल अचानक ही सारी कहानी बदल गई। कल पूरे दिन दिल्ली पानी के भराव से हाहाकार मची रही!

कल सुबह शायद ही कोई सड़क रही होगी जिस पर ६ इंच या उससे अधिक पानी नहीं भरा था! कल सड़क पर जो मैंने झेला वैसा हर साल ही झेलना पड़ता है। फिर भी कल स्थिति बहुत ही भयावह थी। कल घर से सुबह 7 बजकर 50 मिनट निकला इस उम्मीद से कि किंतु बजे तक पहुँच जाऊँगा। जो यात्रा (लगभग २७ किलोमीटर) सामान्यतः सुबह-सुबह ४५ मिनट में पूरी हो जाती है, उसे पूरा करने में लगभग ४ घन्टें ३५ मिनट लगे! ये सिर्फ मेरा व्यक्तिगत अनुभव नहीं है। दिल्ली की सड़कों पर आज जो भी बाहर निकला, उसने यही अनुभव किया!

दिल्ली में पहली बारिश में ऐसा अक्सर ही होता है!

किन्तु प्रश्न है कि यदि यह हर साल होता है तो ऐसा क्यों होता है? क्या इससे बचा नहीं जा सकता!

दिल्ली में जब पानी की कमी हुई तो दिल्ली सरकार, जल मंत्री और आम आदमी पार्टी ने इसका दोष पड़ोसी राज्यों की सरकारों पर डाल दिया! दिल्ली में पानी की कमी के लिए चलिए मान लेते हैं कि पड़ोसी राज्यों की भाजपा सरकारें दोषी थीं! क्योंकि भाजपा विरोधी पार्टी है!

पर कल कालोनियों, गलियों व सड़कों पर जो बाढ़ आई उसके लिए कौन सा राज्य सरकार उत्तरदायी है? दिल्ली सरकार या पड़ोसी राज्यों की सरकारें?

सीवरेज तो पूरी तरह दिल्ली की राज्य सरकार के अधीन है इसमें ना तो केन्द्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है और ना पड़ोसी राज्य लोक सकते हैं! यमुना नामक जी तो दिल्ली से ही होकर जाती हैं! फिर किसने रोका था? इस समस्या से बचने के लिए गर्मियों में पहली बारिश से पहले सीवरेज लाइन की सिर्फ साफ सफाई की आवश्यकता होती है और जहाँ कोई टूट-फूट हो उसकी रिपेयर। इससे अधिक की आवश्यकता तो होती ही है! यह तो हर साल का कार्यक्रम होना चाहिए! पर क्या कारण है कि यह नहीं हो पाता है?

क्यों हर‌ साल‌ की तरह ही दिल्ली सरकार को शायद साल भी इस बाढ़ की प्रतीक्षा थी? सिर्फ इसलिए ताकी समस्या दिख सके और समाधान के नाम राजनीति की जा सके!

माना परसों रात और कल सुबह में रिकार्ड बारिश हुई लेकिन दिल्ली को कुछ इस तरह की परेशानियों का सामना 2014 और 2015 पहले क्यों नहीं करना पड़ता था?

ऐसा क्या था कि शीला दीक्षित जी की सरकार के ऐसी परेशानियाँ ना के बराबर आती थीं और जब से अरविन्द केजरीवाल जी की सरकार आयी है ऐसी परेशानियाँ सामान्य हो गई हैं?

क्या कॉंग्रेस और आम आदमी पार्टी के राजनैतिक यात्रा में इसका प्रश्न छिपा है? अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी की कुल यात्रा में मीडिया और तथाकथिक ‘इण्डिया अगेन्शन करप्शन’ क्रान्ति का सबसे सबसे बड़ा योगदान है। क्या केजरीवाल और उनके सहयोगियों की एक्टिविस्ट और मीडिया अटेंशन की राजनीति में इस प्रश्न का उत्तर छिपा है? क्योंकि केजरीवाल सरकार का हर काम मीडिया अटेंशन का विशेष ध्यान रखता है!

राजीव उपाध्याय

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