नई दिल्ली रेलवे स्टेशन दुर्घटना एवं महाकुम्भ


धर्म और आस्था प्रायः हर व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए महाकुम्भ में स्नान करने की लोगों की इच्छा बहुत ही स्वभाविक है। ठीक उसी तरह सरकार हर उपलब्ध मौके को अपनी उपलब्धि के रूप में दिखाने की प्रवृत्ति होती है। किन्तु इन दोनों के बीच में जब सामंजस्य नहीं रह जाता है तो समस्या आती ही है और जब व्यवस्थाएं लोगों और सत्ता की महत्त्वकांक्षाओं का भार उठा पाने में असक्षम हो तो यह दुर्घटनाओं को आमंत्रित करता ही है।

महाकुम्भ में हर धार्मिक व्यक्ति नहा लेना चाहता है और उत्तर प्रदेश सरकार चाहती है कि इस महाकुम्भ में अधिक से अधिक लोग स्नान कर लें ताकि वह इसे एक उपलब्धि के रूप में दुनिया के सामने रख सके। इस कुम्भ में स्नान के लिए आनेवाले लोगों की संख्या और व्यवस्था को देखा जाए तो यह निश्चित रूप से एक उपलब्धि जैसा है ही। किन्तु उपलब्धि के माथे कुछ दाग भी हैं!

पहले अमृत स्नान के दिन हुड़दंग के बाद प्रारम्भ हुए भगदड़ में अनेकों लोगों की अकाल मृत्यु हुई। रोज ही सड़कों पर अनेकों लोगों तीर्थयात्रियों की विभिन्न दुर्घटनाओं में मृत्यु हो रही है। और कल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 18 लोगों की भगदड़ में दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई। इतनी बड़ी व्यवस्था में छिटपूट दुर्घटनाओं की कोई गिनती है ही नहीं।
इन दुर्घटनाओं का दोषी कौन है?

लोग?

सरकार?

या प्रशासन?

कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है। हर व्यक्ति अपनी सुविधानुसार अपना दोषी घोषित कर सकता है। किन्तु कल की नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई दुर्घटना का दोषी नई दिल्ली रेलवे प्रशासन ही है। जब दो-दो ट्रेनें लेट हों और उम्मीद से अधिक टिकट बेंच कर प्लेटफार्म पर भीड़ इक्कठी कर ली गई हो तब ट्रेनों क प्लेटफार्म बदलने की क्या आवश्यकता थी जबकि एक सामान्य भीड़ के होने पर भी प्लेटफार्म बदलने पर भगदड़ मच जाती है?

अब सरकार के द्बारा चाहें जितनी भी जांच समितियों का गठन हो जाए और दोषी ढ़ूँढ़े जाएं लेकिन अब कुछ भी नहीं हो सकता। क्योंकि ये ना तो पहली बार ऐसी दुर्घटना हुई है और ना ही आखिरी!

हाँ! हम संवेदन जरूर व्यक्त कर सकते हैं। एक दुखद श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

विनम्र श्रद्धांजलि।

राजीव उपाध्याय

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