तार्किक से तार्किक व्यक्ति भी तर्क करना कुतर्क से ही प्रारम्भ करता है। फिर दोनों के बीच की भिन्नता को समझकर तर्क के कला में पारंगत होता है। हालांकि कि व्यक्ति कई बार पुरानी आदत दुहराने भी लगता है। वैसे भी मंडल साहब तो मंडल साहब हैं। उनका लेवल ही अलग है।
खैर!
पहले लोग बुढ़ापे में ही तीर्थ करने की सोचते थे। उसका कारण ये नहीं था कि उन बुजुर्ग तीर्थ यात्रियों को ये लगता हो कि इस तीर्थयात्रा मात्र से उन्हें मोक्ष मिल जाएगा! नहीं, ऐसा नहीं था। उन्हें पता था कि इस तीर्थयात्रा से उनके द्वारा किए कर्मों का जो बोझ है वो कुछ हद तक उनके मन से उतर जाएगा। यही समस्त धार्मिक कर्मकाण्डों की अन्तिम परिणिति है। और यदि ये ना हो तो दुनिया में पागलखानों की बाढ़ आ जाए! साथ ही लोगों को पूर्ण विश्वास है कि इन धार्मिक कार्यों से उनका आने वाला समय पहले से कुछ अच्छा हो जाएगा! इसलिए समाज को आशान्वित व संतुलित रखने के लिए धर्म भी आवश्यक है; तीर्थ भी आवश्यक है और थोड़ा बहुत कर्मकाण्ड भी आवश्यक है।