क्योंकि
मैं रुक ना सकी
मृत्यु के लिए
दयालुता से मगर
इन्तजार उसने मेरा किया
और रूकी जब
तो हम और अमरत्व
बस रह गए।
धीरे-धीरे बढ़ चले
सफर पर हम
जल्दबाजी नहीं उसे।
सब कुछ छोड़ दिया मैंने
अपनी मेहनत और आराम भी।
शिष्टता उसकी ऐसी थी!