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क्योंकि मैं रुक ना सकी मृत्यु के लिए

क्योंकि
मैं रुक ना सकी
मृत्यु के लिए
दयालुता से मगर
इन्तजार उसने मेरा किया
और रूकी जब 
तो हम और अमरत्व
बस रह गए।

धीरे-धीरे बढ़ चले 
सफर पर हम 
जल्दबाजी नहीं उसे। 
सब कुछ छोड़ दिया मैंने 
अपनी मेहनत और आराम भी। 
शिष्टता उसकी ऐसी थी!

चौकीदार

संकरी गलियों से गुजरते हुए
धीमे और सधे कदमों से
लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी 
और कहा था , “सब कुछ ठीक है!"

बैठी बंद जाली के पीछे औरत एक
नहीं था पास जिसके बेचने को कुछ भी;
रुककर दरवाजे पर उसके 
चौकीदार चिल्लाया जोर से, “सब कुछ ठीक है!”

ग़रीबी

आह! नहीं चाहती हो तुम
कि डरी हुई हो 
ग़रीबी से तुम;
घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम
और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने कपड़े में। 

मेरी प्रेयसी! पसन्द नहीं है हमें,
कि दिखें हमें उस हाल में, है जो पसंद कुबेरों को;
तंगहाली हमारी।